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Padosan Bhabhi Ki chudai
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बरसात की एक रात पूनम के साथ-1

प्रेषक : ए वर्मा

मेरा नाम मनोज है, पटना के नज़दीक का रहने वाला हूँ। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। मेरी उम्र 29 साल है, कद-काठी भी अच्छी है। 46 इन्च का चौड़ा सीना, मजबूत बाहें, कुल मिलाकर मैं शरीर से सेक्सी हूँ, जो लड़कियों को चाहिए।

बात उस समय की है जब मैं पटना में रह कर इन्जिनीयरिंग की तैयारी कर रहा था, तब मेरी उम्र करीब 19 साल थी। मैंने जरूरत के हिसाब से सारे ट्यूशन लेने शुरु कर लिये थे। मेरी अंग्रेजी थोड़ी कमजोर थी, तो मैं अंग्रेजी के लिए भी ट्यूशन पढ़ता था।

वहाँ मेरी मुलाकात बहुत लड़के-लड़कियों से हुई। मेरी अंग्रेजी भी सुधरने लगी। मेरी मुलाकात वहाँ पूनम से हुई। पूनम देखने में साधारण सी लम्बी सी पतली सी लड़की थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मुझे उसकी सादगी बहुत पसन्द आई। पहली ही मुलाकात में मैं उसे चाहने लगा था। मैंने उससे बात करने की ठानी।

उस दिन हमारा भाषण यानि speach की क्लास थी, सो मैंने उसे स्टेज पर आमन्त्रित किया। वो शायद स्टेज पर नहीं आना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे फिर भी बुला लिया।

उसने स्टेज पर जाकर अपना भाषण खत्म किया। उसने काफ़ी अच्छा भाषण दिया।

जब हमारी क्लास खत्म हुई, तो मैंने उससे पूछा- तुम जाना क्यो नहीं चाहती थी?

वो बोली- मुझे घबराहट हो रही थी।

मैंने उससे मुस्कुराते हुए फिर पूछा- अब तो नहीं हो रही ना घबराहट?

तो उसने मुस्कुराते हुए ही बोला- नहीं !

मैंने बोला- बहुत अच्छा !

और हम चले गये।

पूनम के बारे में बता दूँ, तो वो 18 साल की साधारण सी दिखने वाली लड़की थी, असल में वो काफ़ी सुन्दर थी, पढ़ाई में भी अच्छी थी। उसके साथ कुछ भी गलत करने का मन नहीं कर सकता था।

मेरा मन उससे दोस्ती करने का हुआ तो मैंने उससे कहा- पूनम, मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।

तो उसने कहा- ठीक है।

उसके बाद से हम हमेशा साथ में ही बैठते थे। तो दोस्तो के ताने आने शुरु हो गये कि कभी तो हमारे साथ भी समय गुजारो। पर हम दोनों ने इस बात पर गौर नहीं किया। हम अंग्रेजी की क्लास के बाद ख़ुदाबक्श लाईब्रेरी जाते थे, साथ में पढ़ाई करने के लिए। हमारी दोस्ती धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। हम अब ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताने लगे।

ऐसे ही तीन महीने बीत गये, मुझे अब लग रहा था कि मैं उससे प्यार करने लगा था। पर मैं सही समय का इंतजार करने लगा उससे अपने मन की बात बोलने के लिए।

मैंने बात करने के लिये उसे अपने हॉस्टल के नज़दीक के PCO का नम्बर दे दिया था।

एक दिन उसने खुद से मुझे फ़ोन किया और कहा- मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ।

मैंने कहा- हाँ, तो ठीक है, हम क्लास में मिलते हैं ना।

तो उसने कहा- नहीं, क्लास में नहीं, कहीं और ! तुम दरभंगा हाऊस आ सकते हो?

मैंने बोला- दरभंगा हाऊस? यह कहाँ है?

"तुम्हें नहीं पता?"

"नहीं !"

"एक काम करो, लाईब्रेरी के पास आ जाओ, हम वहीं से चलते हैं।"

मैंने कहा- ओ के, ठीक है, मैं आता हूँ।

मैं तैयार होकर वहाँ के लिए निकला। मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि वो अभी तक नहीं आई है। मैंने थोड़ा इंतजार किया, थोड़ा और किया, अब मुझे गुस्सा आने लगा, अभी कुछ बोलने ही वाला था कि वो मुझे दिखी। मेरा दिल धक से रह गया। वो काले रंग के सूट में थी और क्या बताऊँ वो किसी हुस्नपरी से कम नहीं लग रही थी।

इत्तेफ़ाक से मैंने पर्पल शर्ट, ब्ल्यू जीन्स के साथ पहना था।

वो मुस्कुराते हुये आई और बोली- काफ़ी देर से खड़े हो क्या?

मैंने झूठ बोल दिया- अरे नहीं, मैं भी बस अभी अभी आया हूँ।

वो बोली- चलो।

और मैं उसके साथ आज्ञाकारी बच्चे की तरह चल पड़ा। मेरी पहली बार नीयत बिगड़ने लगी। हम कभी साथ में चलते तो मैं कभी उसके पीछे होकर उसे निहारता। बला की खूबसुरत लग रही थी वो, आगे से भी और पीछे से भी।

मेरी नीयत उसे पकड़ कर चूमने की होने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा ही था तो वो बोल पड़ी- मनोज, ऐसा ना करो, हाथ छोड़ो।

मैंने उसे देखा और उसका हाथ छोड़ दिया, सोचने लगा कि इसे क्या काम आ गया है जो इसने मुझे यहाँ बुलाया है।

उसके ऐसा कहने से मेरा मूड खराब हो चुका था, फिर भी मैं उसके साथ जा रहा था। हम दरभंगा-हाऊस के अन्दर गये तो मैं यह देखकर काफ़ी हर्षित हुआ। यह गंगा नदी के किनारे है और बगल में काली मन्दिर भी है। मुझे नदी किनारे बैठना बहुत पसन्द था और अभी भी पसन्द है।

तो पूनम ने वहाँ एक कोने का जगह देखी और हम वहाँ बैठ गये। हम कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे लेकिन एक-दूसरे को नहीं देख रहे थे।थोड़ी देर बाद मैंने ही बोलना शुरू किया और पूछा- क्या बात है पूनम, मुझे यहा क्यों बुलाया है?

उसने कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही मन नहीं लग रहा था, तो मैंने सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ। क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?

मैंने कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं है, लेकिन मैं चिन्तित हो गया था कि क्या हो गया भला।

"मेरा मन आज कुछ उचाट हो रहा था, तो सोचा कि तुमसे मिल लेती हूँ, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा हैं कि तुम्हें अच्छा नहीं लगा, तो चलो, हम यहाँ से चलते हैं !"

"अरे कहा ना, ऐसी कोई बात नहीं है।"

"पक्की बात?" उसने पूछा।

"हाँ सच कह रहा हूँ।" और मैं मुस्कुरा दिया।

वो मुझसे उसके घर के बारे बात करने लगी। बात-बात में उसने बताया कि उसकी छोटी बहन की मौत उसकी वज़ह से हुई, और कह कर रोने लगी क्योंकि आज उसकी छोटी बहन का जन्मदिन था और इसीलिये वो मिलना मुझसे चाहती थी।

मैंने डरते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, हल्के से दबाया और कहा- ऐसा मत करो पूनम, तुम्हारी बहन को दुख होगा। और जिसका समय हो जाता है उसे जाना ही पड़ता है ना ! दुखी होने से गया हुआ वापिस नहीं आता ! तुम खुश रहोगी तो उसकी आत्मा को भी सुकून मिलेगा।

और उसे मैंने अपने तरफ़ हौले से खींचा, उसने अपना सर मेरे कन्धे पर रख दिया और उसने अपनी आँखें बन्द कर ली।

मैं धीरे-धीरे उसके कन्धे और उसके बांह को सहलाने लगा। वो अभी भी रो रही थी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछने लगा, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी।

वो अभी बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके कपोल सुर्ख हो गये थे, उसके होंठ पतले थे। मैंने पहली बार उसका चेहरा इतने करीब से देखा था। मन हो रहा था कि मैं उसके होठों को चूम लूँ पर डर भी लग रहा था।

मैं वैसे ही उसका चेहरा पकड़े रहा तो उसने अपनी आँखें खोली और पूछने लगी- ऐसे क्या देख रहे हो?

"बहुत खूबसूरत लग रही हो पूनम तुम !" मैंने बोला।

"हम्म, क्यों झूठ बोल रहे हो ! मैं और सुन्दर?" वो बोली।

"अरे नहीं, मैं सच बोल रहा हूँ !" मैंने कहा।

और मैंने अपना सिर उसके सिर से सटा दिया। हमारी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगी। मैं उसकी साँसों की खुशबू में खोने लगा। हम दोनों की आँखें बन्द होने लगी।

फ़िर मैंने अपनी आँखें खोली तो उसने भी अपनी आँखें खोल ली और हमने एक-दूसरे को देखा, फ़िर मैंने उसके कन्धों को पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। हमारी आँखें एक-दूसरे को देख रही थी। उसने फ़िर अपनी आँखें बन्द कर ली और मैं उसके लबों को चूमने लगा, थोड़ी देर में वो भी मेरा साथ देने लगी और मेरे होठों को चूसने लगी।

मैं अब उसको अपनी बाँहों में भींचने लगा। उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। हम एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे।

तभी एक पत्थर हमारे आगे आकर गिरा तो हमे होश आया कि हम किसी सार्वजनिक स्थल पर बैठे हुए हैं।

हम अलग हो गये, उसने अपने आप को ठीक किया। हम एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे और एक दूसरे का हाथ पकड़ वहाँ से चल दिये।

हमारा प्यार बढ़ने लगा। हम अक्सर पार्क में मिलने लगे और मौका मिलता था तो हम एक-दूसरे को चूमते थे, प्यार करते थे।

फ़िर हम अपनी परीक्षा में व्यस्त हो गये। परीक्षाएँ खत्म होने के बाद सब अपने-अपने घर को जाने लगे।

मैंने पूनम से पूछा- तुम भी घर जा रही हो?

और उदास हो गया।

"नहीं !" उसने कहा।

"सच्ची?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

"सच्ची मुच्ची !" उसने हँसकर मुझे चूमते हुए कहा।

"क्यों, घर पर क्या बोला है?" मैंने पूछा।

"मैंने बोला है कि मैं अगले महीने के पहले हफ़्ते में आऊँगी।" वो मुस्कुराते हुए बोली।

अभी वो मेरे गोद में थी, फ़िर हम एक-दूसरे से शरारतें करने लगे, सताने और फ़िर चूमने और लगे।

शाम को मैं उसे उसके पी जी होस्टल छोड़ने गया। वो दो और लड़कियों के साथ रहती थी। हम वहाँ पहुँचे तो उसकी एक रूममेट जो कि एकदम माल लग रही थी, वो पूनम के गले लगी और बोली- तूने आने में देर कर दी। मैं अब जा रही हूँ।

वो दोनों मेरे तरफ़ देख कर हँसने लगी। मैंने भी अपना हाथ उठा कर 'हाय' बोला तो बदले में उन्होंने भी हाथ उठा कर अभिवादन किया। फ़िर वो चली गई तो पूनम मेरे पास आई और बोली- ये मेरी रूम-मेट हैं।

मैं उसे 'बाय' बोल कर अपने होस्टल चला आया। उस समय मोबाईल का इतना प्रचलन नहीं था। तो मैं उसे फ़ोन भी नहीं कर सकता था पर उसके यहाँ फोन था तो मैं उसे डिनर के बाद फ़ोन किया। हमने इधर-उधर की बातें की और अगले दिन मिलने के लिये बोल कर फ़ोन रख दिया।

सुबह में हम क्लास के बाहर मिले तो मैंने उससे पूछा- मूवी देखने चलना है?

"नहीं !" वो बोली- कहीं और चलते हैं।

"कहाँ?" मैंने पूछा।

"इधर-उधर, गोलघर चलो।"

"मौसम देखा है... कभी भी बारिश हो सकती है !"

"तो क्या हुआ... चलना है?"

मैंने बोला 'चलो' और हम चल दिये। हमने आटो लिया और वहाँ पहुँच गये। हम ऊपर तक गये और वहाँ खड़े होकर बात करने लगे। वो बोली- आज से वो चार दिनों के लिये अकेली हो जायेगी।

"क्यो?" मैंने पूछा।

फ़िर मैंने खुद ही समझ कर बोला- अच्छा, वो तुम्हारी दूसरी रूम-मेट भी जा रही है क्या?"

"हाँ !" उसने बोला।

"मैं तो बोर हो जाऊँगी। तुम क्या करोगे?" उसने मुझसे पूछा।

मैं रोमांटिक मूड में था तो मैंने बोल दिया 'तुमसे प्यार'

कहा और कह कर हम दोनों ही हँस पड़े।

तभी बारिश आ गई। हम दोनों नीचे आते आते पूरे ही भीग गये। फिर वो थोड़ी रोमांटिक होने लगी। हमें एक-दूसरे का स्पर्श अच्छा लगने लगा, मैं बोला- चलो मैं तुम्हें होस्टल छोड़ देता हूँ।

"ठीक है !" वो बोली।

हमने रिक्शा लिया और चल दिये।


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